Monday, January 30, 2017

"मनन करने योग्य"


परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा  संचालित  धार्मिक  मासिक पत्रिका  "सिद्ध सुमन  प्रभा " में  से  साभार
मेरी छोटी बहन कविता लखनऊ में एक टेलीफोन कार्यालय में ऑफिसर है, दो वर्ष पूर्व उसके पति की मृत्युं हो गयी थी, उस समय उसका एक मात्र पुत्र संगीत मात्र ८ माह  का था, दुर्भाग्य से उसके सास-ससुर ने भी उसे अशुभ मानकर उससे किनारा कर लिया था। मैंने जैसे-तैसे करके परिजनों के सहयोग से उसे एक मकान खरीदवा कर अलग रख दिया, पिछले दिनों से वह अपनी सर्विस कर रही थी। परसों रात्रि में अकस्मात् ही उसके एक पड़ोसी का फोन हमारे घर आया उसने बताया कि संगीत काफी बीमार है, चिकित्सकों ने ८ घंटे का समय दिया है, उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है, शायद आज रात्रि मुश्किल से पार कर पाये। मेरी शारीरिक हालत ऐसी नहीं थी कि मैं चल भी पाऊँ अतः मैंने अपनी पत्नि को तुरंत सीतापुर से बस द्वारा लखनऊ पहुंचकर कविता को ढांढस बंधाने को कहा तथा स्वयं असहाय सा शैय्या पर पड़े-पड़े विचार करने लगा, प्रभु से प्रार्थना की कि हे प्रभु कविता ने ऐसे क्या पाप किये हैं जो इसे तीव्रतम आघात बारम्बार सहने पड़ते है। प्रभु इसकी रक्षा करो, मुझे अपने एक मित्र का उदाहरण याद आया कि श्री बालाजी महाराज शीघ्र ही कृपा करके मनोरथ पूर्ति करते हैं, मैंने सारी रात लेटे-लेटे श्री बालाजी महाराज के चरणों में प्रार्थना की तथा प्रातः काल जब मेरा मोबाइल मेरे पास बजा तो भय के मारे मेरी उसे उठाने की इच्छा नहीं हो रही थी। मुझे भय लग रहा था कि भगिनी कविता का करुण क्रन्दन मैं कैसे सुन पाउंगा, फिर भी साहस करके फोन ऑन करके सुना कविता की ख़ुश आवाज़ सुनकर जान में जान आई मैंने पूछा गुड़िया, "संगीत कैसा है ?" वह ख़ुशी के मारे सिसक पड़ी, बोली भैया, "संगीत एकदम ठीक है, आराम से सो रहा है, डाक्टरों का भी कहना था कि न जाने कैसे  इस बालक की हालत में अकस्मात् सुधार आ गया तथा उन्होंने कल ११:३० बजे रात्रि में हमें छुट्टी भी दे दी थी, मैंने कहा, मेरी बहन! श्री बालाजी महाराज, मेहन्दीपुर वालों की कृपा से यह सब हुआ है।

Thursday, January 26, 2017

राम नाम गुण गारे मनवा


प्रात:स्मरणीय परम श्रद्धेय श्री सद्गुरुदेव भगवान द्वारा सियोल (दक्षिण कोरिया) व दिल्ली के मध्य मार्ग में हवाई यात्रा के दौरान २७:१२:२००१ बुधवार मध्याह्न १२:२२(भारतीय समय) रचित एक हृदयस्पर्शी भजन।

राम नाम गुण गारे मनवा, राम नाम गुण गारे....
मिला अमोला नर का चोला इसको सफल बनारे....
राम नाम गुण गारे मनवा, राम नाम गुण गारे....।

तेरा कमाया हुआ खजाना साथ तेरे ना जायेगा,
धरा रहेगा यहीं जगत में फिर पाछे पछतायेगा।
जो आवे तेरे काम वहां पे ऐसा खर्च बना लेरे...
राम नाम गुण गारे मनवा, राम नाम गुण गारे....।

सांस-सांस के साथ में भोले जिंदगी तेरी बीत रही,
बचपन बीता खेल खेल में, है अभी जवानी बीत रही,
जीवन तेरा होय सफल तू ऐसा जतन बना लेरे....
राम नाम गुण गारे मनवा, राम नाम गुण गारे....।

आज करूँगा कल करूँगा समय चला यूँही जाएगा....
राम नाम के बिना ही पगले यहां से वापस जाएगा।
भजन बिना तू धनी बना भी लौट भिखारी जायेगा....
राम नाम की बांध के पूँजी जीवन सफल बना लेरे....
राम नाम गुण गारे मनवा, राम नाम गुण गारे....।

राम नाम से पत्थर तर गये तुलसी जी ने गाया रे...
कृष्ण नाम से मीराजी ने जहर में अमृत पाया रे...
नाम की मिसरी घोल के पगले जीवन मधुर बना लेरे...
राम नाम गुण गारे मनवा, राम नाम गुण गारे....॥

Tuesday, January 24, 2017

"महात्मा उद्दालक"


परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार

महर्षि आयोदधौम्य जंगल में रहकर अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाया करते थे। उस समय छात्रों का वास दिन रात आचार्यों के ही समीप हुआ करता था तथा वे विद्या अध्ययन के साथ -साथ कठिन परिश्रम भी करते थे। एक बार महर्षि ने अपने प्रिय शिष्य आरूणि को धान के खेत की मेढ़ ठीक करने के लिये भेजा। नन्हा बालक बार -बार मिट्टी डालने पर भी मेढ़ से बहते पानी को नहीं रोक सका। फिर वह खुद ही मेढ़ में लेट गया तथा रात्रि होने पर भी जब महर्षि धौम्य ने आरूणि को आश्रम में नहीं देखा तो वे चिन्तित होकर स्वयं खेत की ओर दौड़ पड़े। भावुक होकर अपने पुत्र के समान प्रिय शिष्य को गले से लगा लिया। बालक फिर भी यही कहता रहा गुरूजी मैं वहीं लेट जाता हूँ अन्यथा खेत का सारा पानी बाहर बह जायेगा। गुरूदेव अत्यंत द्रवित होकर बोले - बेटा तूने मेरी आज्ञा का पालन करने के लिये अपने प्राणों तक की परवाह किये बिना कार्य किया है। मैं तुझ पर अति प्रसन्न हूँ। अतः योग विधि से समस्त विद्यायें आज ही प्राप्त हो जायेंगी। प्रसिद्ध गुरू भक्त आरूणि नाम का यह बालक उसी समय से महर्षि उद्दालक के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

Saturday, January 21, 2017

"नैतिक कर्तव्य "



परम श्रद्धेय गुरूदेव द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार

"जिसको न निज गौरव, न निज देश का अभिमान है। 
वह मनुष्य नहीं पशु निरा, और मृतक समान है।।"
अर्थात् जिस मनुष्य को अपने राष्ट्र, राष्ट्र के गौरव, उत्थान एवं विकास का ध्यान न हो वह व्यक्ति पशु के समान तो है ही साथ ही मरा हुआ भी है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने निकट की राष्ट्रीय सम्पत्ति, मुख्य मार्गों, औषधालयों आदि की स्वच्छ्ता, सुरक्षा एवं वृद्धि के लिये अथक प्रयत्न करने चाहिये। वह व्यक्ति ही सर्व प्रकार से सुखी हो सकता है जो स्वयं तो राष्ट्र के लिये कार्य करता ही हो तथा समाज के दूसरे लोगों को भी राष्ट्रहित के कार्यों में लगाता हो। इसके साथ ही मनुष्य मात्र का यह भी कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के सर्वतोन्मुखी विकास के लिये सार्वजनिक स्थानों पर पूर्णतया मद्यनिषेध, धूम्रपान निषेध तथा अन्य कुरीतियों को भी राष्ट्रहित में रोकें तथा उसके लिये जीवन के अल्प समय की तो बात ही क्या प्राणों तक के उत्सर्ग को भी तत्पर रहना चाहिये। 
"जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। 
वह हृदय नहीं एक पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।""

Tuesday, January 17, 2017

अपना जीवन

"अपना जीवन "
परम श्रद्धेय गुरूदेव १००८ श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ विद्वद वरिष्ठ दण्डी स्वामी महादेव आश्रमजी महाराज (वीतराग ब्रह्मचारी श्री महेश चैतन्य जी महाराज ) द्वारा रचित पुस्तिका "नैतिक शिक्षा" में से साभार

बड़ों का आदर करना, साफ़ शुद्ध रहना, अपने निकट की सभी वस्तुओं का उचित संरक्षण करना, बिना पूछे किसी की वस्तु न लेना, बड़े बूढ़ों एवं रोगी तथा बालकों की सहायता करना, ईमानदार रहना, अतिथि सत्कार करना, गुरूजनों का आदर करना, सत्शास्त्रों का चिंतन करना आदि नैतिक ज्ञान है। उपरोक्त के अतिरिक्त और भी बहुत सारी बातें नैतिकता में आती हैं। जैसे सत्य अहिंसा अपरिग्रह आदि। भगवान वेदव्यास ने बड़ा सरल उपाय बताते हुए कहा है---
"आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां  न समाचरेत्"
अर्थात् जो कार्य आपको अपने साथ दूसरों के द्वारा किये जाने पर अच्छा न प्रतीत होता हो, वह कार्य आप कदापि दूसरों के साथ न करें।
अतः प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने परिवार में स्वयं स्वच्छ्ता, ईमानदारी, कर्तव्य-परायणता, परिश्रम से युक्त होकर अपने परिवार के अन्य सदस्यों को इनके लाभ से अवगत कराना चाहिए। हमें परिवार के सभी सदस्यों को यह शिक्षा देनी चाहिए कि हमें अपने दैनिक कार्यों के निर्वाह मात्र में ही सारा समय नष्ट नहीं कर देना चाहिए। हमें प्रत्येक दिन कुछ न कुछ कार्य दूसरों के लिए अवश्य करना चाहिए। जिस मार्ग पर हम चलते हैं उसकी सफाई करना, उसको गन्दा न करना तो हमारा अपना ही कार्य है क्योंकि हम उस मार्ग पर चलते जो हैं यह परोपकार कहाँ हुआ अतः हमें अपने परिवार को इन सब बातों से अवगत कराकर अपना कार्य तो अवश्य ही करना चाहिए तथा सदैव सभी को दूसरों का कार्य भी करने की प्रेरणा देनी चाहिए। यहाँ यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि अपने कार्यों को करने के पश्चात् ही दूसरों के लिए कार्य करना उचित है तथा एकमात्र अपने ही कार्यों में सारा समय नष्ट कर देना दूसरों के लिए कुछ भी समय न निकालना आत्मघात जैसा कार्य है। हमें अपने परिवार में व्यर्थ बैठकर गप लड़ाने वाले आगन्तुकों को रोकना ही होगा तथा स्वयं भी परिवार के सदस्यों को केवल व्यर्थ की बातें करने में ही समय नष्ट करने से रोकना होगा। परिवार के सभी सदस्यों को प्रातःकाल जल्दी उठकर अपना कार्य स्वयं करना चाहिए तथा यदि हो सके तो परिवार के दूसरे सदस्यों के कार्यों में भी उनकी प्रसन्नता के लिये सहायता करनी चाहिये। आलस्य में पड़े रहकर दूसरों का मुँह ताकना बुरी बात है। परिवार में भगवान के प्रति आभार प्रकट करने की (प्रार्थना करने की) आदत सभी को डालनी चाहिये जिससे सभी लोग अनुशासित रहकर परिवार एवं राष्ट्र के उत्थान के लिये सुदृढ़ हो सके। यदि परिवार का कोई व्यक्ति अपने बुरे स्वभाव के कारण दूसरों का अपमान भी करता हो, उसे भी सहन करना चाहिये। स्वयं विनम्र होकर उसे ऐसा करने से रोकना चाहिए। सदा भयभीत करके ही दूसरों को नहीं सुधारा जा सकता। संक्षेप में यही कहना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्यों को स्वयं आलस्य, क्रोध आदि को त्यागकर दूसरे पारिवारिक सदस्यों की सुख सुविधा का ध्यान रखना चाहिए, सभी को अपना अपना कार्य स्वयं करना चाहिए तथा अन्य सदस्यों को भी ऐसी ही शिक्षा देनी चाहिए।
माँ संसार का प्रथम गुरू है बालक माँ के समीप रहकर बचपन में ही पुस्तकों से कहीं ज्यादा सीख सकता है। अतः नारी को सर्वप्रथम सुसंस्कृत होकर परिवार के लिये अच्छे संस्कार देना अनिवार्य हो जाता है।